इंतज़ार
और धीरे से दिखा तेरा चेहरा नकाब से
आँखों से जो छेड़ की तूने
ऐसा लगा जैसे भर दिया मेरे दिल के पैमाने को शराब से
वो हलचल मेरे मन की
वो तेज धड़कन मेरे दिल की
सौ तमन्नाए जगा गई मौसम के हिसाब से
हम तो यूँही खड़े थे दीदार -ए-शोक की खातिर
की तेरी नज़रों ने हमे यूँ बांधा तेरे हुस्न -ए -जाल से
फिर न जाने कब शाम ढली कब शब् बीती
और हम वहीँ बैठ गए कल के इंतज़ार में
(स्वाति शिं )
9 comments:
Very beautiful one swati.... good yaar...
बहुत ही खूबसूरत!
सादर
शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
@yashoda ji @noopur @yashwant ji @ madan ji thank u very much !!
वाह Swati Shinh जी
एक और बेहतरीन प्रयास किया....बहुत सुन्दर
वाह.....
बहुत सुन्दर लिखा है स्वाति...
अनु
@mridul ji @anu thnkss ! :)
बेहतरीन कविता. खूबसूरत शयाल और शब्द.
thanks Nihar ji!!
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