Sunday 18 November 2012



 इंतज़ार 


कुछ यूँ चली हवा ,

और धीरे से दिखा तेरा चेहरा नकाब से


आँखों से जो छेड़ की तूने


ऐसा लगा जैसे भर दिया मेरे दिल के पैमाने को शराब से


वो हलचल मेरे मन की


वो तेज धड़कन मेरे दिल की


सौ तमन्नाए जगा गई मौसम के हिसाब से


हम तो यूँही खड़े थे दीदार -ए-शोक की खातिर


की तेरी नज़रों ने हमे यूँ बांधा तेरे हुस्न -ए -जाल से


फिर न जाने कब शाम ढली कब शब् बीती


और हम वहीँ बैठ गए कल के इंतज़ार में











(स्वाति शिं )

9 comments:

Noopur said...

Very beautiful one swati.... good yaar...

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही खूबसूरत!

सादर

Madan Mohan Saxena said...

शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन

Unknown said...

@yashoda ji @noopur @yashwant ji @ madan ji thank u very much !!

Mridul Joshi said...

वाह Swati Shinh जी

एक और बेहतरीन प्रयास किया....बहुत सुन्दर

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह.....
बहुत सुन्दर लिखा है स्वाति...

अनु

Unknown said...

@mridul ji @anu thnkss ! :)

ओंकारनाथ मिश्र said...

बेहतरीन कविता. खूबसूरत शयाल और शब्द.

Unknown said...

thanks Nihar ji!!