इंतज़ार
और धीरे से दिखा तेरा चेहरा नकाब से
आँखों से जो छेड़ की तूने
ऐसा लगा जैसे भर दिया मेरे दिल के पैमाने को शराब से
वो हलचल मेरे मन की
वो तेज धड़कन मेरे दिल की
सौ तमन्नाए जगा गई मौसम के हिसाब से
हम तो यूँही खड़े थे दीदार -ए-शोक की खातिर
की तेरी नज़रों ने हमे यूँ बांधा तेरे हुस्न -ए -जाल से
फिर न जाने कब शाम ढली कब शब् बीती
और हम वहीँ बैठ गए कल के इंतज़ार में
(स्वाति शिं )