कुछ सवालो से उलझी पहली हूँ मैं ,
सब कहते है सब साथ है मेरे फिर क्यूँ अकेली हूँ मैं !!
अपनी ही दुनिया में खोई ,
अपने ही सपनो को पाने में लगी हूँ मैं ,
ज़िन्दगी की उन्सुल्झी पहेलियों को सुलझाने में लगी हूँ मैं !!
मंजिल को पाने का रास्ता कभी बहुत आसान सा लगता है,
फिर क्यूँ कभी मुझे अपने ही सपनो से डर लगता है !!
हर पल कुछ नया करने की ,
कुछ नया पाने की चाह मन में उठती है ,
उन्हें बस एक चाह न रहकर एक ऊँची उड़ान भरने को दिल करता है !!
उड़ान भी इतनी ऊँची की आसमान का हर कोना छू जाऊ ,
बस अब उस समय का इंतज़ार है ...
जब मैं अपने सपनो को पूरा करते जल्द ही देख पाऊ!!!
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